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भारत में पूजे जाने वाले वृक्षों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण वृक्ष है पीपल। ये ऐसा वृक्ष है जिसका उल्लेख हमारे साहित्यिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में कई बार हुआ है और इसके साथ ही प्रेतकथाओं में भी इसकी चर्चा होती है। इसे बोधिवृक्ष,अश्वत्थ एवं गुह्यपुष्पक के नाम से भी जाना जाता है। फ़िकस रेलीगीऑस इसका वैज्ञानिक नाम है । यह न केवल दिन में बल्कि रात में भी आक्सिजन ही देता है, इसी वजह से यह अन्य वृक्षों से भिन्न है ।
यह भारतीय उप महाद्वीप के अलावा चीनी प्रदेश का वृक्ष है । इसकी उपस्थिति 30 डिग्री उत्तर से 5 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के बीच और धरातल से लगभग 10 मीटर से 1500 मीटर की ऊंचाई तक देखी जा सकती है । ये उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन, मॉनसून वर्षा वन, सवाना और शीतोष्ण प्रदेशों में पाया जाता है जहां की मासिक वर्षा 6 से 10 सेंटीमीटर तक होती है और साल के दो या तीन शुष्क महीने भी होते हैं जब वर्षा नहीं होती। ये भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, चीन, इंडोनेशिया और श्रीलंका आदि देशों में पाया जाता है। इसके अलावा इसे अन्य महाद्वीपों में रोपा गया है जहाँ इसके अनुकूल वातावरण मिलने की वजह से यह उगने लगा है।
यह गूलर यानि फिकस प्रजाति एवं मोरेसी कुल का है। यह लंबे समय तक जीवित रहने वाला वृक्ष है । औसतन इसकी आयु 1000 वर्ष तक होती है । गूलर जाति के वृक्ष ऐसे होते हैं जिनके फूल दिखाई नहीं देते । इसके फल छोटे और बीजों से भरे हुए होते हैं। यह विशालकाय और बहुत घना वृक्ष होता है जिसकी औसत ऊंचाई 30 मीटर तक होती है। इसका तना वृहद् और पत्ते दिल की आकार के होते हैं जो पहले हल्के और बाद में गहरे हरे रंग के हो जाते हैं । पत्तों की लम्बाई 4 से 7 इंच और चौड़ाई 3 से 5 इंच तक होती है।
पीपल के वृक्ष का आयुर्वेद में विशेष स्थान है । इसके पत्ते और डाली दोनों का उपयोग औषधि बनाने के लिए किया जाता है । पीलिया, दमा, सर्दी-खांसी, मलेरिया जैसे रोगों के इलाज के लिए पीपल से बनी औषधियों का प्रचलन है । हालांकि इसकी लकड़ी का प्रयोग फर्निचर बनाने के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता परंतु यज्ञ आदि पूजा पाठ में इसकी लकड़ी को विशेषरूप से इस्तेमाल में लाया जाता है ।
भारत में पीपल का धार्मिक महत्व अन्य कई वृक्षों की तुलना में बहुत ज्यादा है । जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म में यह अति पूजनीय वृक्ष है क्योंकि इसमें विष्णु भगवान और श्री कृष्ण भगवान का वास माना जाता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि गौतम बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी ।
पीपल के विषय में कुछ और रोचक जानकारी - पीपल भारत के तीन राज्यों बिहार, हरियाणा तथा ऑडिशा का राज वृक्ष है। कहीं पर भी आसानी से उग जाने के कारण इसे पर्यावरणीय खरपतवार माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता में इसके महत्व का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय की शिल्पकला में पीपल के पत्तों का आकार कई वस्तुओं पर उकेरा जाता था। आज भी भारत-रत्न के मेडेल का आकार पीपल के पत्ते जैसा ही है। बोधगया के मूल बोधि वृक्ष की एक डाली को श्रीलंका में बोया गया था जो कि मानव द्वारा उगाया गया सबसे प्राचीन वृक्ष है । इसे वहाँ श्री महाबोधि कहते है ।
इस पूरे लेख में पीपल के बारे में दी गई जानकारी पीपल के महत्व को दर्शाता है । परंतु एक बात जो इससे सीखने वाली है वह ये कि जिस तरह पीपल बड़ी आसानी से विषम परिस्थिति में भी उग जाता है और किसी इमारत की छत या दीवार पर लगा हुआ दिख जाता है उसी तरह परिस्थितियों से हार मानकर घुटने टेक देने में कोई समझदारी नहीं है। बल्कि हर परिस्थिति में स्वयं को मजबूत बनाकर भी हम ऊपर उठ सकते हैं । इसी से हमारे जीवन की सार्थकता प्रमाणित होती है। इसलिए अगली बार जब परिस्थितियों से हार मानकर बैठ जाने का मन करे तब अपने घर के सामने वाली इमारत की छत पर उगने वाले छोटे से पीपल के पौधे को देखें और कहें, "जब ये कर सकता है तो मैं क्यों नहीं ?"
सदा मुस्कुराते रहें !!
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