सुन्दर पीले फूलों से लदे ये हरे-भरे पेड़ भारत के हर शहर और हर गाँव में दिखते हैं। कभी उन फूलों का चटक पीला रंग चिलचिलाती धूप में भी मुस्कुराकर हमें भयंकर गर्मी के मौसम की चेतावनी देता है और कभी उनका कोमल जीवंत रंग हमारी आंखों को सुकून पहुंचाता है। अब आपने अनुमान लगा लिया होगा कि मैं इंडियन लबर्नम के बारे में बात कर रही हूं। जी हाँ, जिसे हम हिंदी में अमलतास कहते हैं मैं उसी के फूलों की बात कर रही थी। साल के इस समय पर जब सर्दियों का मौसम अपना पैर पसार चुका है ऐसे में अमलतास के बारे में बात करना भले ही थोड़ा अटपटा लगे परन्तु मैं आज इस पेड़ के बारे में बात करने पर ज़ोर दूंगी क्योंकि मुझे सर्दियाँ रास नहीं आती। ऐसा बिलकुल नही है कि मुझे ग्रीष्मकाल बहुत पसंद है। लेकिन फिर भी मैं सर्दियों की सुबह मन मारकर घर का काम करने की बजाय गर्मियों में पसीना बहाना ज़्यादा पसंद करती हूँ। और कुछ संभव हो न हो पर मैं कम से कम अपने विचारों में ग्रीष्म ऋतू को जीवित रखना चाहती हूँ। चलिए अब मुद्दे पर आते हैं। मैं आपके साथ इंडियन लैबर्नम के बारे में कुछ जानकारी साझा करूँगी जो मैंने अभी हाल ही में एकत्रित की हैं।
कई देशों में पाए जाने की वजह से इस वृक्ष के सैंकड़ो नाम हैं। पीले फूलों के गुच्छों की वजह से इस पेड़ को गोल्डन शावर ट्री नाम मिला है, जो कान के झुमकों की तरह शाखाओं से लटकते हैं। इस पेड़ के अन्य अंग्रेजी नाम हैं - कैसिया फिस्टुला, पर्सिंग कैसिया और पुडिंग-पाइप ट्री। हिंदी में, अमलतास के अलावा इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे बंदर लाठी, गिरिमल्लाह, सुवर्णका। इन सभी नामों में से, जो नाम मुझे सबसे अधिक लुभाता है, वह है- बन्दर लाठी क्योंकि बचपन में मुझे यही बताया गया था कि इस पेड़ पर बन्दर की पूँछ उगती है। यदि उसके फलों का आकार देखें तो ऐसा कहना ग़लत नहीं है। तेलुगु में इसे रेलू कहा जाता है, तमिल में इसे कोनराई और तिरु कहते हैं और बंगला में इसे अमुलतास, सोंदल और सोनाली कहा जाता है। ये नामों की सूची बहुत लम्बी है और सारे नाम याद रखना आसान काम नहीं है। इसलिए बस इतना ही।
एक भूगोलवेत्ता होने के नाते मेरा सबसे महत्वपूर्ण काम है आपको इस से जुड़ी भौगोलिक जानकारी देना। तो सर्वप्रथम इसका भौगोलिक वितरण- यह दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया का वृक्ष है जो उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों से लेकर उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है जहाँ का वातावरण कम नमी वाला और मध्यम बरसात वाला होता है। एशिया के बाहर, इसकी उपस्थिति ओशिनिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में मिली है। कुल मिलाकर कई तरह की जलवायु वाले क्षेत्रों में इसे पाया गया है जिसमें उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, मानसून वन, शुष्क पर्णपाती वन और अर्ध-शुष्क वन वाले क्षेत्र शामिल हैं। पर्णपाती जंगलों के अन्य सभी पेड़ों की तरह इस पेड़ में भी मध्यम ऊंचाई और कठोर लकड़ी होती है जिसका उच्च व्यावसायिक मूल्य होता है। पत्तियां का आकार मध्यम है, फूलों में पांच पंखुड़ियां हैं और इसमें छड़ी जैसे फल उगते हैं।
अमलतास के फूल अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों में बड़ा महत्व रखते हैं। विशेष रूप से भारत, श्रीलंका, थाईलैंड और लाओस में रहने वाले लोग अपने देवताओं को ये फूल अर्पित करते हैं और इन फूलों से अपने घरों और मंदिरों को सजाते हैं। यह थाईलैंड का राष्ट्रीय फूल है।
इसकी विशिष्टता यहीं समाप्त नहीं होती है। इसके महत्व की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल स्वास्थ्य और दवाओं के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालाँकि, यहाँ मैं उन सभी बीमारियों का वर्णनात्मक विश्लेषण नहीं करूंगी। लेकिन कुछ चीज़ों की जानकारी सभी को होनी चाहिए जिससे इसके महत्व के बारे में पता रहे। त्वचा, रक्त, पेट, मूत्र, छाती से लेकर गले तक के विभिन्न प्रकार के संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए इस पेड़ के विभिन्न भागों का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों और कलियों को पकाया और खाया जाता है। लेकिन उचित जानकारी के बिना इसके किसी भी हिस्से का सेवन करना असुरक्षित होगा इसलिए ऐसा करने का जोखिम कभी न उठायें। उम्मीद है कि एक साधारण सा वृक्ष जिसको आपने बचपन में बहुत करीब से देखा होगा, जिसके नीचे खेले होंगें और जिसकी छाँव में बैठकर दोस्तों के साथ मौज मस्ती की होगी आज उसको फिर से नए सिरे से जानने का मौका मिला। इस जानकारी को औरों के साथ भी बाँटिये और सबका ज्ञान बढ़ाइए।
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