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जापान का सूर्योदय


देश और दुनिया 

सूर्योदय का देश जापान  

क्या आप जानते हैं कि जापान को सूर्योदय का देश क्यों कहा जाता है ? चलिए इस बारे में चर्चा करते हैं। तो सबसे पहले बता दूँ कि इसका राज़ जापान के नाम में ही छिपा है। जी हाँ, जिस देश को हम जापान कहते हैं उसका आधिकारिक या जापानी नाम है निप्पॉन या निहों। आइये जानते है कि इस शब्द का अर्थ क्या है ? निप्पॉन शब्द दो जापानी शब्दों के मेल से बना है, पहला शब्द है 'नीची' जिसका अर्थ है सूरज अथवा दिन। दूसरा शब्द है, होण जिसका अर्थ है उद्भव या उगना। इन दोनों शब्दों के मेल से बने शब्द निप्पॉन का अर्थ है, सूरज का उगना या जहाँ से सूरज उगता है। अब इस देश को सम्बोधित करने के लिए आखिर इस नाम का चुनाव क्यों किया गया है ? इतिहास की मानें तो ऐसा कहा जाता है कि जापान को यह नाम चीन ने दिया था। प्राचीन चीनी मान्यता के अनुसार जापान वहां स्थित था जहाँ से चीनी लोगों को सूर्योदय दिखता था।  

परन्तु यदि हम भौगोलिक दृष्टिकोण से निप्पॉन के नामकरण की चर्चा करें, तो हम पाएंगे कि इस नाम की सटीकता में कोई दो राय नहीं है। भूगोल शास्त्र के अनुसार किसी देश की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए हम अक्षांशीय अवं देशांतरीय रेखाओं का प्रयोग करते हैं क्यूंकि गोलाकार पृथ्वी पर किसी भी जगह का सही आंकलन करना संभव नहीं है।  ये काल्पनिक रेखाएं पूरी पृथ्वी को कई समान भागों में बांटती हैं और हर एक देश और देश का छोटे से छोटा हिस्सा, किसी न किसी भाग में स्थित है। उस स्थिति का हिसाब वहां से गुज़रने वाली देशांतर और अक्षांश रेखाओं की सहायता से लगाया जाता है। इन रेखाओं के अंक के अनुसार हम किसी भी जगह की स्थिति का सही आंकलन कर सकते हैं। तो अब इन रेखाओं की स्थिति के हिसाब से जब हम जापान की भौगोलिक स्थिति का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि जापान ग्लोब पर वहां स्थित है जहाँ पर आखरी देशांतर रेखाएं हैं।अब भला ये आखरी देशांतर रेखाएं क्या हैं ? जब हम पृथ्वी  के गोलाकार स्वरुप को ग्लोब पर दर्शाते  हैं और उस पर एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक लम्बी देशांतरीय रेखाएं खींचते हैं  तो कुल मिलकर 360 रेखाएं बनती हैं। ये शून्य  से शुरू होकर 180 डिग्री तक होती हैं। इन रेखाओं की शुरुआत शून्य  डिग्री की रेखा से होती है जिसे हम प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) या ग्रीनिच मध्याह्न रेखा कहते हैं। यह रेखा पृथ्वी को लम्बाई में दो समान हिस्सों में बांटती है - पूर्वी एवं पश्चिमी गोलार्ध। शुन्य से 180 डिग्री रेखाएं पूर्व की तरफ और 180 डिग्री रेखाएं पश्चिम की तरफ होती हैं। जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है तो हर एक देशांतर रेखा एक निश्चित समय पर, सूरज के बिल्कुल सामने होती है, जिसे उस देशांतर रेखा का स्थानीय समय कहते हैं या यह कह सकते हैं कि उस स्थान का सूर्योदय उसी समय पर होता है। हमारी पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है इसलिए पृथ्वी का पूर्वी भाग सूरज के सामने पहले आता है और नए दिन की शुरुआत तभी होती है जब 180 डिग्री की देशांतर रेखा सूरज के ठीक सामने हो। जापान पूर्वी गोलार्ध में स्थित है और उसकी देशांतर रेखाओं की स्थिति 122  डिग्री पूर्व से 153  डिग्री पूर्व है। इन देशांतर रेखाओं की स्थिति के अनुसार जापान 180 डिग्री देशांतर रेखा के बहुत निकट स्थित है यानि कि ठीक उस जगह पर जहाँ हर दिन सूरज की किरणें सबसे पहले पड़ती हैं। तो इसी हिसाब से जापान का निप्पॉन नामकरण बिल्कुल सटीक लगता है। ये हुआ भौगोलिक स्थिति के परिपेक्ष में जापान के नामकरण का ब्यौरा। 

परन्तु मेरे निजी विश्लेषण के अनुसार जापान को सूर्योदय का देश कहना क्यों उचित लगता है, अब मैं आपको वो बताती हूँ। यदि हम जापान के बारे में जानें तो, पाएंगे कि वह एक ऐसा देश है जो कई प्राकृतिक और मानवकृत आपदाओं को झेलते हुए भी आज हमारे सामने एक उन्नत देश के रूप में खड़ा है, ठीक उसी  तरह जिस तरह हर अंधियारी रात को चीरकर हर सुबह सूरज एक विजयी योद्धा के रूप में हमारे सामने आकर खड़ा हो जाता है। एक छोटा सा देश जो मात्र 377975 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हो, जिसका सारा भूभाग छोटे-छोटे द्वीपों का समूह हो, जो जगह के अनुपात में ज्यादा जनसँख्या की मुश्किलों को झेल चुका हो, जहाँ आये दिन भूकंप के झटके और सुनामी की आशंका बनी रहती हो, जो दुनिया का एकमात्र ऐसा देश जिसपर परमाणु हमला हुआ हो और न जाने कितनी  ऐसी अनगिनत घटनाएं जो किसी भी देश को पल में अवनति की ओर धकेल दे, इन सबको झेलते हुए भी जापान कितनी दृढ़ता से न केवल खड़ा है अपितु दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की भी कर रहा है। जापान आज एक अति विकसित देश के रूप हमारे सामने जीवंत उदाहरण पेश करता है ठीक उसी तरह जिस तरह घने बादलों को काटकर सूरज अपनी तेज़ चमक से अपने शानदार व्यक्तित्व को दर्शाता  है। क्या आपको भी लगता है कि कभी कभी कुछ नाम बहुत ही अद्भुत ढंग से नाम धारण करने वाले के चरित्र से मेल खाने लगते हैं? या फिर यूँ कहें कि कुछ लोग या स्थान अपने नाम के अनुरूप ही ढल जाते हैं? इसी प्रश्न पर समाप्त करते हुए आशा करुँगी कि आप मेरी बात पर ज़रूर विचार करेंगे। 


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