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अर्थ डे- आज का दिन

आज का दिन  अर्थ डे अथवा पृथ्वी दिवस  हर वर्ष २२ अप्रैल का दिन आम दिनों से कुछ अलग होता है। कहने को तो कुछ अलग सा होने की बात है नहीं क्यूंकि जिस कारणवश इसे अगल करते हैं वह हमारे नित्य प्रतिदिन का हिस्सा होना चाहिए। फिर भी हमने २२ अप्रैल को अर्थ डे यानि पृथ्वी दिवस मनाने के लिए समर्पित किया हुआ है। तो आज पृथ्वी दिवस के उपलक्ष पर इस विशेष दिन से जुड़े कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनकी जानकारी हम सभी को होनी ही चाहिए।  इतिहास के पन्नों में झाँकने से हमे ज्ञात होगा कि इस दिन को मनाने की शुरुआत कितनी सोची समझी योजनाबद्ध तरीके से हुई थी। जिसका श्रेय एक व्यक्ति की दूरदर्शिता को जाता है। १९७० में इस दिन को मनाने के लिए उस समय की अमेरिका की परिस्थिति बिलकुल अनुकूल थी। उस समय अमेरिका में वायु प्रदूषण की वजह से आम जनता पहले से ही कुछ करने का सोच रही थी। १९६९ में कैलिफ़ोर्निया के तेल रिसाव की दुर्घटना से लोग सड़कों पर उतर आये थे और वहां आंदोलनों का दौर चल रहा था।  ठीक उसी समय सेनेटर नेल्सन गेलॉर्ड, जो कि पर्यावरण के गिरते स्तर के प्रति जनता जो जागरूक करने के लिए कुछ करने का सोच रहे थे, उन्ह

देश भक्ति समूह गान

आज का दिन   समूह गान को समर्पित  'हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग रूप वेश भाषा , चाहे  अनेक  हैं .............' आप में से कितने लोगों ने स्कूल में ये गीत गाया है ? ज़ाहिर सी बात है कि ७०-९० के दशक में केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले सभी लोग इस गीत से भली भांति परिचित होंगे !  आज यूँ ही बैठे-बैठे अपने स्कूल के  दिनों में गाये इस गीत की याद आ गयी और लगा कि इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए क्यूंकि इसका हमारे यानि केंद्रीय विद्यालय के भूतपूर्व छात्रों के  जीवन और सोच पर अत्यंत गहरा प्रभाव रहा है। भले ही आपने इसे महसूस न किया हो परन्तु इस लेख के अंत तक आप मेरी बात से सौ फीसदी सहमत हो जायेंगे।  आज की इस  बातचीत से आप में से बहुत से लोग खुद को जोड़ पायेंगे बशर्ते कि आप मेरी तरह किसी केंद्रीय विद्यालय के छात्र रहे हों।  आज मुझे स्कूल में होने वाली सुबह की प्रार्थना सभा याद आ गयी। हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में शारीरिक व्यायाम पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। सर्दी हो या गर्मी, धूप या बरसात, प्रार्थना सभा होती  ही थी और व्यायाम उसका अभिन्न हिस्सा भी होता ही था। व्यायाम करने के पश्चात् हम

यादों के झरोखों से

आज का दिन यादों के झरोखों से  शायद इस लेख को पढ़ने वालों में से बहुत से लोगों के पिता जी भारतीय वायु सेना में कार्यरत रहे होंगे, तो उनके लिए खुद को इस लेख से जोड़ पाना आसान रहेगा। इस लेख के द्वारा मैं आप लोगों को अपनी कुछ ऐसी सुखद यादों के गलियारों में ले जाना चाहती हूँ जिन्हे मैंने जिया है। तो आज का दिन उन दिनों को याद करने का है और इस बात पर विचार करने का है कि हमारी पीढ़ी वैसे दिनों को क्यों सहेज कर नहीं रख पायी ?  भारतीय सेना की सबसे प्रमुख बात है कि उसमें सभी लोग धर्म, जाति, वर्ण, राज्य आदि की विभिन्नताओं से परे होते हैं। इस बात को मैंने बहुत करीब से देखा है। बात आज से लगभग २५ से ३० साल पहले की है जब मेरे पिताजी वायु सेना में काम करते थे और हम किसी वायु सेना के कैंप में रहा करते थे। उन जगहों पर साल के सभी पर्व बहुत ही मज़ेदार होते थे। यूँ समझ लीजिये कि त्यौहार भले ही किसी एक राज्य में मनाया जाने वाला हो पर वहां पर सभी लोग इन त्योहारों को मिलकर मानते थे। मार्च में जब होली मनाई जाती थी तो सभी धर्म के लोग एक निर्धारित जगह पर इकठ्ठा हो जाते और जम कर होली खेलते। ऐसे ही अप्रैल में बंगालियों