सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

यादों के झरोखों से

आज का दिन
यादों के झरोखों से 

शायद इस लेख को पढ़ने वालों में से बहुत से लोगों के पिता जी भारतीय वायु सेना में कार्यरत रहे होंगे, तो उनके लिए खुद को इस लेख से जोड़ पाना आसान रहेगा। इस लेख के द्वारा मैं आप लोगों को अपनी कुछ ऐसी सुखद यादों के गलियारों में ले जाना चाहती हूँ जिन्हे मैंने जिया है। तो आज का दिन उन दिनों को याद करने का है और इस बात पर विचार करने का है कि हमारी पीढ़ी वैसे दिनों को क्यों सहेज कर नहीं रख पायी ? 

भारतीय सेना की सबसे प्रमुख बात है कि उसमें सभी लोग धर्म, जाति, वर्ण, राज्य आदि की विभिन्नताओं से परे होते हैं। इस बात को मैंने बहुत करीब से देखा है। बात आज से लगभग २५ से ३० साल पहले की है जब मेरे पिताजी वायु सेना में काम करते थे और हम किसी वायु सेना के कैंप में रहा करते थे। उन जगहों पर साल के सभी पर्व बहुत ही मज़ेदार होते थे। यूँ समझ लीजिये कि त्यौहार भले ही किसी एक राज्य में मनाया जाने वाला हो पर वहां पर सभी लोग इन त्योहारों को मिलकर मानते थे। मार्च में जब होली मनाई जाती थी तो सभी धर्म के लोग एक निर्धारित जगह पर इकठ्ठा हो जाते और जम कर होली खेलते। ऐसे ही अप्रैल में बंगालियों का पोइला बोइशाख आते ही अलग अलग भाषाएं बोलने वाले छोटे छोटे बच्चे बंगाली गानों पर नृत्य करने के लिए इकट्ठा हो जाते थे। ऐसा ही कुछ जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा और दिवाली में भी हुआ करता था। गणेश चतुर्थी सिर्फ़ मराठियों का त्यौहार कभी नहीं होता था। कोई भी भाषा बोलने वाले गणेश चतुर्थी  के सांस्कृतिक अनुष्ठान में भाग लेते थे। दुर्गा पूजा में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम सभी के लिए होते थे। दुर्गा पूजा के चार दिनों में अलग अलग रंगारंग कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हम सभी बच्चे साल भर प्रतीक्षा करते थे। उन दिनों में दुर्गा माँ का भोग ग्रहण करने के लिए बंगाली होना ज़रूरी नहीं होता था। दिवाली मेलों में सभी धर्म के लोगों के साथ घूमना और दिवाली वाली रात सभी के साथ मिलकर पटाखे फोड़ना बहुत ही आम बात थी। कहने का मतलब है कि उन दिनों में लोगों का एक साथ मिलकर त्यौहार मनाना एक सुखद अनुभव हुआ करता था जिसकोआज भी याद कर मैं ख़ुशी का अनुभव करती हूँ.


सुना है, अब ऐसा नहीं होता! कहने का तात्पर्य है कि अब लोगों में वो आत्मीयता नहीं रही। इन सभी बातों को याद करने का एक कारण है और इसे मैं आपके सामने एक प्रश्न के रूप में रखना चाहती हूँ। क्या हम इतने असहिष्णु हो गए हैं कि हम अपना भारतीय होना ही भूल गए हैं ?? हो सके तो उत्तर अवश्य दीजियेगा। 


-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

Translation

Today- Down the memory lane

Perhaps the father of many people who read this article must have been working in the Indian Air Force, then it will be easy for them to relate themselves to this article. Through this article, I want to take you to the corridors of some of my pleasant memories that I have lived. So today is the day to remember those days and to consider why our generation could not save those days?

The most important thing about the Indian Armed forces is that the people are beyond the differences of religion, caste, varna, state etc. I have seen this thing very closely. It is about 25 to 30 years ago when my father used to work in the Air Force and we used to live in an Air Force Camp. All the festivals of the year were very pleasant in those places. Just understand that even though the festival is going to be celebrated in any one state, everyone celebrated these festivals together. When Holi was celebrated in March, people of all religions gathered at a designated place and played Holi together. In April, as soon as Poila Boishakh of Bengalis came, small children who spoke different languages ​​gathered to dance on Bengali songs. Something similar happened in Janmashtami, Ganesh Chaturthi, Durga Puja and Diwali. Ganesh Chaturthi was never the only Marathi festival. Those speaking any language participated in the cultural rituals of Ganesh Chaturthi. The cultural programs held in Durga Puja were for everyone. All the children used to wait throughout the year to participate in a colorful program during the four days of Durga Puja. In those days, it was not necessary to be Bengali to enjoy the bhog which was distributed on Durga Puja. It was very common to hang out with people of all religions in Diwali fairs and burst firecrackers with everyone on Diwali night. It means that in those days it was a pleasant experience to celebrate the festival together, which I am happy to remember today.

Have heard, this does not happen now! This means that now there is no more affinity among people. There is a reason to remember all these things and I want to put this as a question in front of you. Have we become so intolerant that we have forgotten to be Indians?? If possible, please reply.


Image source:

For more updates on geography visit:

Facebook page:

Website:

YouTube




टिप्पणियाँ

  1. Beautifully captured the spirit of celebration in golden yeastier years! Gone are the days when celebration was more in the hearts rather in virtual world - thanks to social media! I too belong to the era of celebrating festivities in team spirit with communities without bar of language or regional discrimination. It used to be everyone's celebration which is the true spirit of festivity!

    जवाब देंहटाएं
  2. Yes .. It is very true. Now a days every body is busy in making money and no one has time to spend good times with friends and relatives. Thanks for refreshing those nostalgic moments. There are many things which we have forgotten in these passing years and at the end of our life we will regret. Thanks. Keep blogging and share your thoughts.

    जवाब देंहटाएं
  3. Nice memoirs.... it would have taken most of the readers down their own memory lanes, which were filled with innumerable nostalgic moments of similar thread. Such positive thoughts would help the youger readers to know the true value of the bygone times. Well done.... Keep writing.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

देश भक्ति समूह गान

आज का दिन   समूह गान को समर्पित  'हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग रूप वेश भाषा , चाहे  अनेक  हैं .............' आप में से कितने लोगों ने स्कूल में ये गीत गाया है ? ज़ाहिर सी बात है कि ७०-९० के दशक में केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले सभी लोग इस गीत से भली भांति परिचित होंगे !  आज यूँ ही बैठे-बैठे अपने स्कूल के  दिनों में गाये इस गीत की याद आ गयी और लगा कि इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए क्यूंकि इसका हमारे यानि केंद्रीय विद्यालय के भूतपूर्व छात्रों के  जीवन और सोच पर अत्यंत गहरा प्रभाव रहा है। भले ही आपने इसे महसूस न किया हो परन्तु इस लेख के अंत तक आप मेरी बात से सौ फीसदी सहमत हो जायेंगे।  आज की इस  बातचीत से आप में से बहुत से लोग खुद को जोड़ पायेंगे बशर्ते कि आप मेरी तरह किसी केंद्रीय विद्यालय के छात्र रहे हों।  आज मुझे स्कूल में होने वाली सुबह की प्रार्थना सभा याद आ गयी। हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में शारीरिक व्यायाम पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। सर्दी हो या गर्मी, धूप या बरसात, प्रार्थना सभा होती  ही थी और व्यायाम उसका अभिन्न हिस्सा भी होता ही था। व्यायाम करने के पश्चात् हम

पेड़-पौधों की दुनिया: अमलतास

पेड़-पौधों की दुनिया अमलतास  सुन्दर पीले फूलों से लदे ये हरे-भरे पेड़ भारत के हर शहर और हर गाँव में दिखते हैं।  कभी उन फूलों का चटक पीला रंग चिलचिलाती धूप में भी मुस्कुराकर हमें भयंकर गर्मी  के मौसम की चेतावनी देता है और कभी उनका कोमल जीवंत रंग हमारी आंखों को सुकून पहुंचाता है। अब आपने अनुमान लगा लिया होगा कि मैं इंडियन लबर्नम के बारे में बात कर रही  हूं। जी हाँ, जिसे हम हिंदी में अमलतास कहते हैं मैं उसी के फूलों की बात कर रही थी।  साल के इस समय पर  जब सर्दियों का मौसम अपना पैर पसार चुका है ऐसे में  अमलतास के बारे में बात करना भले ही थोड़ा अटपटा लगे परन्तु  मैं आज इस पेड़ के बारे में बात करने पर ज़ोर दूंगी क्योंकि मुझे सर्दियाँ रास नहीं आती। ऐसा बिलकुल नही है कि मुझे ग्रीष्मकाल बहुत पसंद है। लेकिन फिर भी मैं सर्दियों की सुबह मन मारकर घर का काम करने की बजाय गर्मियों में पसीना बहाना ज़्यादा पसंद करती हूँ। और कुछ संभव हो न हो पर मैं कम से कम अपने विचारों में ग्रीष्म ऋतू को जीवित रखना चाहती हूँ। चलिए अब मुद्दे पर आते हैं। मैं आपके साथ इंडियन लैबर्नम के बारे में कुछ जानकारी साझा करूँगी जो मैंने

द पर्ल ऑफ़ द ओरिएंट सी- फिलीपीन्स

देश और दुनिया  फिलीपीन्स- द पर्ल ऑफ़ द ओरिएंट सी यानि पूर्वी समुद्र का मोती    विश्व के कई देश द्वीपों के समूह से बने हुए हैं। छोटे छोटे द्वीपों के संकलन से बने ये देश भले ही क्षेत्र फल में ज़्यादा नहीं हैं परन्तु इनकी आर्थिक विकास की दर बड़े बड़े देशों से भी कहीं आगे है। कितनी हैरान कर देने वाली बात है ये परन्तु सच है! उदाहरण के तौर पर जब हम जापान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया आदि कई एशियाई देशों के आर्थिक विकास की दर को इनसे कई गुना बड़े देश जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल से तुलना करके देखते हैं तो हम यह अंतर साफ़ तौर पर देख सकते हैं। यह इस बात को सिद्ध करता है कि किसी  देश का प्रगतिशील होना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वह आकार में कितना बड़ा है अपितु इस पर निर्भर करता है कि वहां के नागरिकों ने अपने देश के संसाधनों को किस तरह से अपने और अपने देश की उन्नत्ति के लिए सटीक ढंग से इस्तेमाल किया है। आज मैं देश और दुनिया में एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रही हूँ जो छोटा होने के बावजूद भी उन्नत देशों की श्रेणी में आता है। परन्तु मैं उसकी आर्थिक दशा अथवा उससे जुड़ी बात पर टिप्पणी नहीं करूंगी।

जापान का सूर्योदय

देश और दुनिया  सूर्योदय का देश  जापान    क्या आप जानते हैं कि  जापान को सूर्योदय का देश क्यों कहा जाता है ? चलिए इस बारे में चर्चा करते हैं। तो सबसे पहले बता दूँ कि इसका राज़ जापान के नाम में ही छिपा है। जी हाँ, जिस देश को हम जापान कहते हैं उसका आधिकारिक या जापानी नाम है निप्पॉन या निहों। आइये जानते है कि इस शब्द का अर्थ क्या है ? निप्पॉन शब्द दो जापानी शब्दों के मेल से बना है, पहला शब्द है 'नीची' जिसका अर्थ है सूरज अथवा दिन। दूसरा शब्द है, होण जिसका अर्थ है उद्भव या उगना। इन दोनों शब्दों के मेल से बने शब्द निप्पॉन का अर्थ है, सूरज का उगना या जहाँ से सूरज उगता है। अब इस देश को सम्बोधित करने के लिए आखिर इस नाम का चुनाव क्यों किया गया है ? इतिहास की मानें तो ऐसा कहा जाता है कि जापान को यह नाम चीन ने दिया था। प्राचीन चीनी मान्यता के अनुसार जापान वहां स्थित था जहाँ से चीनी लोगों को सूर्योदय दिखता था।   परन्तु यदि हम भौगोलिक दृष्टिकोण से निप्पॉन के नामकरण की चर्चा करें, तो हम पाएंगे कि इस नाम की सटीकता में कोई दो राय नहीं है। भूगोल शास्त्र के अनुसार किसी देश की भौगोलिक स्थिति जानने