पूरे विश्व में बहुत कम ही ऐसे देश हैं जो नए साल का स्वागत गर्मियों के मौसम में करते हैं। आगे बढ़ने से पहले आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि पृथ्वी के ७१ % भाग में जल है और सिर्फ २९ % भाग पर ही स्थल है। उसमें से भी सभी बड़े महाद्वीप उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं जहाँ पर ४० % हिस्से में स्थल है और ६० % हिस्से में जल यानि कि महासागर हैं। दूसरी ओर दक्षिणी गोलार्ध के मात्र २० % हिस्से में स्थल है जिसमें दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्टिका केवल तीन महाद्वीप हैं और केवल ३२ देश ही स्थित हैं। इन देशों की संख्या इस प्रकार से है - अफ्रीका के लगभग बीस, एशिया के दो, दक्षिणी अमेरिका के लगभग नौ और पूरा का पूरा ऑस्ट्रेलिया इसमे शामिल हैं। अब इनमें से आज हम बात करेंगे ऑस्ट्रेलिया की जो ग्रीष्म ऋतु में नया साल मनाता है। परन्तु कैसे ? ये जानने के लिए अंत तक ज़रूर पढ़ें।
ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जो कि अपने आप में पूरा का पूरा महाद्वीप है। एकमात्र ऐसा देश जो कि पूरे महाद्वीप में फैला हुआ है। यहाँ एक और जानकारी दे दूँ, वो ये कि ऑस्ट्रेलिया भारत से दुगने से भी ज़्यादा बड़ा है। जहाँ भारत का कुल क्षेत्रफल ३.२८ मिलियन स्क्वायर किलोमीटर है वहीं ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल ७.६८ मिलियन स्क्वायर किलोमीटर है। अब मुद्दे की बात पर आते हैं। आखिर ऑस्ट्रेलिया गर्मियों में नया साल कैसे मनाता है ? जबकि भारत में हम उस समय प्रचंड ठण्ड से जूझ रहे होते हैं ! इसे हमें ऑस्ट्रेलिया की भौगोलिक स्थिति से जोड़कर देखना होगा। ऑस्ट्रेलिया और उसके जैसे कई देश जो दक्षिणी गोलार्ध में हैं वे सभी नव वर्ष के समय ग्रीष्म ऋतु का मज़ा लेते हैं। यहाँ एक और बात जान लें कि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित देशों में गर्मियों का मौसम हमारे भारत देश जैसा नहीं होता।अर्थात वहां की गर्मियां हमारे यहाँ की गर्मियों की तरह असहनीय नहीं होती क्योंकि जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया है कि दक्षिणी गोलार्ध में केवल २० % हिस्से में स्थल है इसका मतलब हुआ कि बाकि के ८० % हिस्से में पानी है जो स्थल के तापमान को आसानी से परिचालित कर बहुत ज्यादा गर्म नहीं होने देता। तो आप समझ गए होंगे कि वहां गर्मियों के मौसम में पारा ५० डिग्री के पार जाये ऐसा कम ही होता है।
अब जानते हैं कि वहां दिसंबर-जनवरी के महीनों में ग्रीष्म ऋतु क्यों होती है ? पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ एक निर्धारित पथ पर घूमती है और यह पथ पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। यह पथ दीर्घ वृत्ताकार है। इसके तहत पृथ्वी कभी सूरज के बहुत पास तो कभी बहुत दूर होती है जिसका असर पृथ्वी पर होने वाले मौसम के परिवर्तन पर देखा जाता है। जब पृथ्वी सूर्य के करीब होती है तब हम ग्रीष्म ऋतु और जब दूर होती है तब शीत ऋतु का अनुभव करते हैं। जब यह दूरी न बहुत ज्यादा और न बहुत कम हो तब हम शरद, बसंत, इत्यादि ऋतुओं का आनंद ले पाते हैं। इसी से जुड़ी एक और बात है वह यह कि पृथ्वी अपनी धुरी पर सीधी खड़ी नहीं है। वह लगभग २३.५ डिग्री पूर्व की तरफ झुकी हुई है। इस वजह से पृथ्वी के दोनों गोलार्धों में एक समय पर एक जैसा मौसम नहीं रहता है। जिसका मतलब यह हुआ कि जब हम यानी उत्तरी गोलार्ध में रहने वाले लोग ग्रीष्म की तपिश झेलते हैं तब दक्षिणी गोलार्ध के लोग सर्द मौसम का लुत्फ़ उठाते हैं। ठीक इसके उलट जब हमारे उत्तरी गोलार्ध में ठण्ड हमें कँपाती है तब दक्षिणी गोलार्ध के लोग ग्रीष्म की गर्माहट से जूझ रहे होते हैं। यह सब पृथ्वी के आकार, उसका अपनी धुरी पर एक निर्दिष्ट समय का पालन करते हुए भ्रमण, सूर्य के इर्द-गिर्द निर्धारित समयावधि के हिसाब से परिक्रमा करने के फलस्वरूप होता है। इन जैसी कई और भौगोलिक कारणों से हमें धरती पर जलवायु की विविधताओं को अनुभव करने का अवसर मिलता है।
दिसंबर-जनवरी में जब भारत में कड़ाके की ठण्ड में हम नव वर्ष का स्वागत करते हैं वहीं पृथ्वी के दूसरे छोर पर स्थित ऑस्ट्रेलिया में गर्मियों के मौसम में नए साल का प्रतिग्रहण होता है। एक नज़र ऑस्ट्रेलिया की अक्षांशीय स्थिति पर भी डाल लेते है जो कुछ इस प्रकार से है- १०.४१ डिग्री दक्षिण से ४३.३८ डिग्री दक्षिण। ऑस्ट्रेलिया विश्व का छठा सबसे बड़ा देश और सबसे छोटा महाद्वीप है। चारों तरफ से पानी से घिरा है। इसके पूर्व में प्रशांत और पश्चिम में हिन्द महासागर है। महासागरों से घिरे होने के बावज़ूद भी यहाँ पर जलवायु में विविधताएं अन्य जगहों की तुलना में ज़्यादा है जो एक विरोधाभास है। जब भारत से मॉनसूनी हवाएं विदा लेती हैं उसके कुछ समय बाद ये ऑस्ट्रेलिया पहुँचती हैं और उत्तर की ओर से देश में प्रवेश कर वर्षा करती हैं। जिसका अमूमन समय दिसंबर-जनवरी ही रहता है। यानी कि न केवल ग्रीष्म बल्कि कुछ-कुछ बारिश की फुहारों के बीच भी वहां पर नव वर्ष का आगमन होता है। यह वर्षा देश के लिए अति महत्वपूर्ण है क्यूंकि ऑस्ट्रेलिया में लम्बी बारहमासी नदियों की कमी है और वहां पर ऊँचे पर्वत भी नहीं हैं जहाँ बर्फ की चादरें हों जो पिघल कर नदियों में जल की आपूर्ति करें। इसलिए यह वर्षा पूरे वर्ष के लिए जल की आपूर्ति करने का प्रमुख माध्यम है।
अध्ययन और अनुसन्धानों में यह पाया गया है कि विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का जो दौर चल रहा है उसका बहुत ही बुरा असर ऑस्ट्रेलिया में देखा जा रहा है। विगत ३०-३५ वर्षों में ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न जगहों के दैनिक और वार्षिक तापमान तथा वर्षा की मात्रा में बहुत बदलाव आया है। यहाँ आपको बता दूँ कि ऑस्ट्रेलिया के इस हालात के लिए वहां के लोग उतने ज़िम्मेदार नहीं हैं जितना कि वहां की भौगोलिक परिस्थिति! मतलब ये कि यह सब प्राकृतिक तौर पर हो रहा है जो मनुष्य के नियंत्रण से बाहर है। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ क्यूंकि दूसरे देशों की तरह वहां औद्योगिक क्रांति उस स्तर पर नहीं आई जिससे की पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़े और जो जलवायु को भी परिवर्तित करे। वहाँ १९वीं सदी में खनन और पशुपालन ही प्रमुख आर्थिक गतिविधियां थीं और आज भी वहां बैंक, वित्तीय सेवाएं, स्वास्थ संबंधी सेवाएं और अन्य कई तरह की तृतीयक सेवाएं आर्थिक गतिविधियों में शामिल हैं जो जलवायु परिवर्तित करने में सक्षम नहीं हैं। यूं कह सकते हैं कि वहां मानव ने आर्थिक समृद्धि के लिए प्रदूषण को बढ़ावा देने वाला कोई जोखिम नहीं उठाया। इस देश की भौगोलिक परिस्थिति और उससे प्रभावित जलवायु ही वहां के मौसमी बदलावों का कारण हैं। हमें इस बात की सराहना करनी चाहिए कि जिस गति से वहां जलवायु परिवर्तन हो रहा है ठीक उसी गति से वहां के लोग, सरकार एवं प्रशासन सभी उससे निपटने के लिए रणनीति तैयार कर मुश्तैदी से खड़े हैं। वे इस बात को प्रमाणित कर रहे हैं कि प्रकृति के प्रभुत्व के आगे वे बिना संघर्ष किये घुटने नहीं टेक रहे हैं। यह न केवल उनका अपने देश के प्रति बल्कि पूरे विश्व के प्रति कर्तव्यपरायणता का संकेत देती है। और ऐसा क्यों न हो, आखिर वे एक ऐसे देश में रहते है जो कई मायनों में दुनिया के दूसरे देशों से भिन्न और ज़रा हटके है! ऐसे अद्वितीय देश और महाद्वीप को मानव जाति के बसने योग्य बनाये रखना ज़रूरी भी है !!
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