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द पर्ल ऑफ़ द ओरिएंट सी- फिलीपीन्स

देश और दुनिया  फिलीपीन्स- द पर्ल ऑफ़ द ओरिएंट सी यानि पूर्वी समुद्र का मोती    विश्व के कई देश द्वीपों के समूह से बने हुए हैं। छोटे छोटे द्वीपों के संकलन से बने ये देश भले ही क्षेत्र फल में ज़्यादा नहीं हैं परन्तु इनकी आर्थिक विकास की दर बड़े बड़े देशों से भी कहीं आगे है। कितनी हैरान कर देने वाली बात है ये परन्तु सच है! उदाहरण के तौर पर जब हम जापान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया आदि कई एशियाई देशों के आर्थिक विकास की दर को इनसे कई गुना बड़े देश जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल से तुलना करके देखते हैं तो हम यह अंतर साफ़ तौर पर देख सकते हैं। यह इस बात को सिद्ध करता है कि किसी  देश का प्रगतिशील होना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वह आकार में कितना बड़ा है अपितु इस पर निर्भर करता है कि वहां के नागरिकों ने अपने देश के संसाधनों को किस तरह से अपने और अपने देश की उन्नत्ति के लिए सटीक ढंग से इस्तेमाल किया है। आज मैं देश और दुनिया में एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रही हूँ जो छोटा होने के बावजूद भी उन्नत देशों की श्रेणी में आता है। परन्तु मैं उसकी आर्थिक दशा अथवा उससे जुड़ी बात पर टिप्पणी नहीं करूंगी।

अर्थ डे- आज का दिन

आज का दिन  अर्थ डे अथवा पृथ्वी दिवस  हर वर्ष २२ अप्रैल का दिन आम दिनों से कुछ अलग होता है। कहने को तो कुछ अलग सा होने की बात है नहीं क्यूंकि जिस कारणवश इसे अगल करते हैं वह हमारे नित्य प्रतिदिन का हिस्सा होना चाहिए। फिर भी हमने २२ अप्रैल को अर्थ डे यानि पृथ्वी दिवस मनाने के लिए समर्पित किया हुआ है। तो आज पृथ्वी दिवस के उपलक्ष पर इस विशेष दिन से जुड़े कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनकी जानकारी हम सभी को होनी ही चाहिए।  इतिहास के पन्नों में झाँकने से हमे ज्ञात होगा कि इस दिन को मनाने की शुरुआत कितनी सोची समझी योजनाबद्ध तरीके से हुई थी। जिसका श्रेय एक व्यक्ति की दूरदर्शिता को जाता है। १९७० में इस दिन को मनाने के लिए उस समय की अमेरिका की परिस्थिति बिलकुल अनुकूल थी। उस समय अमेरिका में वायु प्रदूषण की वजह से आम जनता पहले से ही कुछ करने का सोच रही थी। १९६९ में कैलिफ़ोर्निया के तेल रिसाव की दुर्घटना से लोग सड़कों पर उतर आये थे और वहां आंदोलनों का दौर चल रहा था।  ठीक उसी समय सेनेटर नेल्सन गेलॉर्ड, जो कि पर्यावरण के गिरते स्तर के प्रति जनता जो जागरूक करने के लिए कुछ करने का सोच रहे थे, उन्ह

अशोक के पेड़

पेड़-पौधों की दुनिया  अशोक के पेड़  अगर मैं आपसे कहूँ कि जिस पेड़ को आपने बचपन से अशोक के पेड़ के नाम से जाना हो वह दरअसल अशोक का पेड़ है ही नहीं, तो आप चौंक जायेंगे, है न ? क्यूंकि मै भी चौंक गयी थी जब मेरे साथ यह घटित हुआ। एक लंबा सा पेड़ जिसे मैंने अक्सर बाग़ बगीचों में, सड़क के किनारों पे और रिहायशी इलाकों में आम तौर पर देखा है और अशोक के पेड़ के रूप में जाना है, हाल ही में पता चला है कि वो तो अशोक का पेड़ है ही नही ! यदि आप सही अशोक के पेड़ को पहचानते हैं और उसे दूसरे पेड़ से फर्क कर सकते हैं तो मैं यही कहूँगी कि आपकी जानकारी सराहने योग्य है! मुझे तो अभी पता चला कि उत्तर भारत में जिस लंबे छरहरे वृक्ष को हम अक्सर देखते हैं और उसे अशोक के पेड़ के रूप में ही जानते हैं वह तो  फाल्स अशोक का पेड़ है। तो चलिए आज आपके लिए नहीं, यूँ कहूँ कि अपने जैसे अनभिज्ञ लोगों के लिए मैं दोनों ही अशोक के पेड़ों की जानकारी पेश करूंगी और आशा रखूंगी की आप इस जानकारी को जितना हो सके आगे तक पहुंचाएंगे।   मैं दोनों वृक्षों का विवरण साथ साथ दूँगी जिससे कि हम दोनों के अंतर को आसानी से समझ सकें। असली अशोक का पेड़ जिसे सराका अ

कदम या वृत्तपुष्प वृक्ष

पेड़ पौधों की दुनिया  कदम या वृत्तपुष्प वृक्ष  यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।  मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे। .  ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।  किसी तरह नीची हो जाती यह कदम  डाली।   सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता हम सभी ने पढ़ी है और इस कविता ने कभी न कभी आप में भी कदम के वृक्ष को जानने की उत्सुकता को बढ़ाया होगा ! हो सकता है कि यह बात सभी पर लागू न हो परन्तु मुझ जैसे प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यह एक आम बात है।  मेरे लिए इस कविता के अर्थ को समझने से ज्यादा यह ज़रूरी था कि मै कदम के पेड़ के बारे में खोजना शुरू करूँ। और आज का यह लेख उसी छान-बीन पर आधारित है। यहाँ मैं अपनी खोज के कुछ  तथ्य आपके सामने पेश करूंगी। उम्मीद है कि एक भूगोलवेत्ता के दृष्टिकोण से लिखा गया ये लेख आपकी जानकारी को बढ़ाने में मदद करेगा।  कदम का पेड़ उष्ण सदाबहार वनस्पति की प्रजाति का वृक्ष है। तो इससे हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह पेड़ उन देशों में पाया जाता है  जो कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच में स्थित हों। यानि कि अधिकांश दक्षिणी और दक्षिण- पूर्वी एशियाई  देशों में ये वृक्ष पाया

मोहम्मद अल इदरीसी

भूगोल शास्त्री    मोहम्मद अल इदरीसी   (सेउता  ११०० C.E.- ११६५/६६ C.E.)  आज हम चर्चा करेंगे एक अत्यंत प्रख्यात भूगोल शास्त्री की जो मूलतः अरब से थे। उनका भूगोल के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक युग में प्रयोग किये जाने वाले मानचित्रों को बनाने के लिए जिस नींव की आवश्यकता थी उसे उन्होंने स्थापित किया था। उनका जन्म अफ़्रीकी महाद्वीप में स्थित सेउता नामक जगह पर हुआ था। अल इदरीसी को उनके समय के विख्यात भूगोलविद्द, कार्टोग्राफर और मिश्रविज्ञान के ज्ञाता (इजिप्टोलॉजिस्ट) के रूप में माना जाता है।  चलिए उनके द्वारा किये कार्यों पर एक नज़र डालते हैं : १.अपने जीवन काल के शुरूआती दिनों में उन्होंने कई जगहों का स्वयं दौरा किया और उसका प्रारूप  तैयार किया। इसका अभिलिखित रूप दूसरे भूगोलशस्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज़ रहा है जिसे आज भी इस्तेमाल किया जाता है।  २. उनके टेबुला रोजेरिआना नाम के दस्तावेज़ में विश्व के कई देशों की व्याख्या उनके मानचित्रों के संग्रह के साथ प्रस्तुत किया गया है।  ३. उन्होंने अफ्रीका, हिन्द महासागर और सुदूर पूर्व में बसे देशों की जानकारी को संग्रहित

देश भक्ति समूह गान

आज का दिन   समूह गान को समर्पित  'हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग रूप वेश भाषा , चाहे  अनेक  हैं .............' आप में से कितने लोगों ने स्कूल में ये गीत गाया है ? ज़ाहिर सी बात है कि ७०-९० के दशक में केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले सभी लोग इस गीत से भली भांति परिचित होंगे !  आज यूँ ही बैठे-बैठे अपने स्कूल के  दिनों में गाये इस गीत की याद आ गयी और लगा कि इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए क्यूंकि इसका हमारे यानि केंद्रीय विद्यालय के भूतपूर्व छात्रों के  जीवन और सोच पर अत्यंत गहरा प्रभाव रहा है। भले ही आपने इसे महसूस न किया हो परन्तु इस लेख के अंत तक आप मेरी बात से सौ फीसदी सहमत हो जायेंगे।  आज की इस  बातचीत से आप में से बहुत से लोग खुद को जोड़ पायेंगे बशर्ते कि आप मेरी तरह किसी केंद्रीय विद्यालय के छात्र रहे हों।  आज मुझे स्कूल में होने वाली सुबह की प्रार्थना सभा याद आ गयी। हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में शारीरिक व्यायाम पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। सर्दी हो या गर्मी, धूप या बरसात, प्रार्थना सभा होती  ही थी और व्यायाम उसका अभिन्न हिस्सा भी होता ही था। व्यायाम करने के पश्चात् हम

फ़िनलैंड - क्यों झीलों का देश ?

देश और दुनिया  फ़िनलैंड-  झीलों का देश  नॉर्वे के बाद एक और यूरोपीय देश की जानकारी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही हूँ। भरोसा रखिये कि 'देश और दुनिया' की इस श्रृंखला में विश्व के लगभग सभी देश जो किसी न किसी प्रकार से दूसरे देशों से भिन्न हैं अथवा अपनी किसी विशेषता की  वजह से अलग पहचान  रखते हैं  उनके बारे में पढ़ने को ज़रूर मिलेगा। परन्तु इसके लिए आपको भी मेरे साथ इस ब्लॉग से जुड़े रहने का वादा  करना होगा ! रहेंगे न? तो आज की चर्चा के लिए जो देश चुना गया है वो है फ़िनलैंड, जो नॉर्वे का पड़ोसी देश है। यहाँ की ख़ास बात है यहाँ पर पायी जाने वाली असंख्य झीलें जिसकी वजह से इसे हज़ार झीलों का देश कहा जाता है। तो आखिर ये झीलों का देश क्यों कहलाता हैं,  चलिए उसके बारे में जान लेते हैं।  हमारी पृथ्वी अपनी उत्पत्ति से लेकर अब तक कई भौगोलिक प्रक्रियाओं से गुज़र चुकी है जिनमें से एक प्रमुख घटना है हिमयुग। ये वह समय था जब पूरी पृथ्वी का तापमान शून्य से नीचे गिर गया था और सारी पृथ्वी को बर्फ के आवरण ने ढक लिया था।  वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर दो बार ऐसा हो चुका है। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से