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अशोक के पेड़

पेड़-पौधों की दुनिया 
अशोक के पेड़ 

अगर मैं आपसे कहूँ कि जिस पेड़ को आपने बचपन से अशोक के पेड़ के नाम से जाना हो वह दरअसल अशोक का पेड़ है ही नहीं, तो आप चौंक जायेंगे, है न ? क्यूंकि मै भी चौंक गयी थी जब मेरे साथ यह घटित हुआ। एक लंबा सा पेड़ जिसे मैंने अक्सर बाग़ बगीचों में, सड़क के किनारों पे और रिहायशी इलाकों में आम तौर पर देखा है और अशोक के पेड़ के रूप में जाना है, हाल ही में पता चला है कि वो तो अशोक का पेड़ है ही नही ! यदि आप सही अशोक के पेड़ को पहचानते हैं और उसे दूसरे पेड़ से फर्क कर सकते हैं तो मैं यही कहूँगी कि आपकी जानकारी सराहने योग्य है! मुझे तो अभी पता चला कि उत्तर भारत में जिस लंबे छरहरे वृक्ष को हम अक्सर देखते हैं और उसे अशोक के पेड़ के रूप में ही जानते हैं वह तो फाल्स अशोक का पेड़ है। तो चलिए आज आपके लिए नहीं, यूँ कहूँ कि अपने जैसे अनभिज्ञ लोगों के लिए मैं दोनों ही अशोक के पेड़ों की जानकारी पेश करूंगी और आशा रखूंगी की आप इस जानकारी को जितना हो सके आगे तक पहुंचाएंगे।  


मैं दोनों वृक्षों का विवरण साथ साथ दूँगी जिससे कि हम दोनों के अंतर को आसानी से समझ सकें। असली अशोक का पेड़ जिसे सराका असोका भी कहा जाता है भारतीय उपमहाद्वीप का प्रमुख वृक्ष है। यह वर्षा वनों में पाया जाने वाला वृक्ष है। भारत के  दक्षिणी हिस्सों में यह बहुतायत से उगने वाला वृक्ष है। फाल्स अशोक का पेड़ यानि बुद्ध वृक्ष अथवा देवदारु या फिर असुपल्लव को भी हम अशोक के पेड़ के नाम से ही जानते हैं। वह असल में मोनून लोंगीफोलियम होता है। यहाँ यह जानना रोचक होगा कि यह भी मूलतः दक्षिण भारत और श्रीलंका का वृक्ष है। तो मोटे तौर पर यह मान लेते हैं कि दोनों ही वृक्ष दक्षिण भारत से हैं। मगर फिर भी दोनों वृक्षों की बनावट, उनका आकार, ऊंचाई, आयतन, फूलों की बनावट और रंग, पत्त्तों का आकार जैसी कई चीज़ों में भिन्नता देखी जा सकती है। चलिए एक एक करके इन गुणों के आधार पर इनके अंतर को समझने का प्रयास करते हैं। 

असली अशोक का वृक्ष सघन और काफी छायादार होता है जबकि फाल्स अशोक का पेड़ लम्बा एवं छरहरा होता है।  एक तरफ असली अशोक के वृक्ष के ऊपरी हिस्से का आयतन काफी ज्यादा होता है तो दूसरी तरफ फाल्स अशोक का ऊपरी हिस्सा कम आयतन वाला और शंकु आकार का होता है। असली अशोक में पीले- नारंगी रंग के सुगन्धित फूल फरवरी से अप्रैल के महीनों में खिलते हैं। फाल्स अशोक में सितारों के आकार वाले हल्के हरे रंग के नाज़ुक से फूल खिलते हैं।  ये भी बसंत ऋतु में ही खिलते हैं। असली अशोक की ऊंचाई ज़्यादा नहीं होती जबकि फाल्स अशोक का पेड़ लंबा होता है। दोनों ही वृक्ष उष्ण सदाबहार प्रजाति की श्रेणी के हैं। दोनों वृक्षों के पत्ते लम्बे होते हैं परन्तु फाल्स अशोक के पत्ते थोड़े ज्यादा लम्बे और किनारों से लहरदार होते हैं। 


इनकी उपयोगिता की चर्चा करें तो हम पाएंगे कि फाल्स अशोक के पेड़ को अंग्रेजी शासकों ने अपने काल में, उसकी बनावट के कारण जो कि उनके देशों में पाए जाने वाले वृक्षों से मेल खाती है और उससे मिलने वाले लाभ के कारण, प्रचुर मात्रा में उगाया है। इसका कई जगहों पर उपयोग किया जाता है। जैसे पत्तों को सजावट अथवा तोरण बनाने में, लकड़ी का पानी के जहाज़ों, पेंसिल और माचिस की तिल्ली बनाने में, फल के बीजों को दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। दूसरी तरफ असली अशोक का पेड़ जंगलों की कटाई की मार झेलते हुए विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में पहुँच गया है। इस पेड़ की छाल को सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 

हमारी संस्कृति और धर्म की दृष्टि से देखें तो असली अशोक के वृक्ष से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इसे इसके बाह्य सौंदर्य, हरी - भरी प्रकृति, मंत्रमुग्ध करने वाले सुन्दर फूलों के गुच्छों के कारण बहुत शुभ माना जाता है। इसके अलावा इसे उर्वरता का प्रतीक भी माना जाता है। इसे हम मंदिर परिसर में देख सकते हैं। हिन्दू और बौद्ध धर्मों में इस वृक्ष का विशेष महत्त्व रहा है। एक तरफ जहाँ बौद्ध धर्म में इसे यक्षी से जोड़कर कई पौराणिक गाथाओं में सम्मिलित किया गया है। वहीं दूसरी ओर हिन्दू धर्म में इस वृक्ष को कामदेव से जोड़कर कई कथाएं रची गयी हैं। 

दो मिलते जुलते वृक्षों को पृथक करके पहचानने का ये मेरा छोटा सा प्रयास आपके काम आये इसी आशा के साथ यहाँ समाप्त करने की आज्ञा चाहूंगी। फिर किसी और वृक्ष की जानकारी लेकर आपसे भेंट होगी। तब तक आप सब अपना ख्याल रखियेगा !

धन्यवाद !!

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