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कदम या वृत्तपुष्प वृक्ष

पेड़ पौधों की दुनिया 
कदम या वृत्तपुष्प वृक्ष 

यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। 
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे। . 
ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। 
किसी तरह नीची हो जाती यह कदम  डाली।  

सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित यह कविता हम सभी ने पढ़ी है और इस कविता ने कभी न कभी आप में भी कदम के वृक्ष को जानने की उत्सुकता को बढ़ाया होगा ! हो सकता है कि यह बात सभी पर लागू न हो परन्तु मुझ जैसे प्रकृति प्रेमियों के लिए तो यह एक आम बात है।  मेरे लिए इस कविता के अर्थ को समझने से ज्यादा यह ज़रूरी था कि मै कदम के पेड़ के बारे में खोजना शुरू करूँ। और आज का यह लेख उसी छान-बीन पर आधारित है। यहाँ मैं अपनी खोज के कुछ  तथ्य आपके सामने पेश करूंगी। उम्मीद है कि एक भूगोलवेत्ता के दृष्टिकोण से लिखा गया ये लेख आपकी जानकारी को बढ़ाने में मदद करेगा। 

कदम का पेड़ उष्ण सदाबहार वनस्पति की प्रजाति का वृक्ष है। तो इससे हम यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह पेड़ उन देशों में पाया जाता है  जो कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच में स्थित हों। यानि कि अधिकांश दक्षिणी और दक्षिण- पूर्वी एशियाई  देशों में ये वृक्ष पाया जाता है। इसके मूल स्थान के बारे में वैज्ञानिकों में काफी मतभेद है।  कुछ इसे आफ्रिकी महाद्वीप के पास स्थित द्वीप, मेडागास्कर का बताते हैं और कुछ इसे एशिया का बताते हैं। हालाँकि इसकी चर्चा लम्बे समय तक चलने के बावजूद भी वैज्ञानिक इस बात पर एकमत नहीं हो पाए हैं कि यह मेडागास्कर का वृक्ष है। परन्तु फिर भी अधिकांश वनस्पति विशेषज्ञ इसे मूल रूप से वहीं का वृक्ष मानते हैं। कदम का वृक्ष लगभग ४५ मीटर की ऊंचाई वाला होता है। पेड़ का तना सीधा और लम्बा होता है परन्तु बहुत ज्यादा मोटा नहीं होता। आमतौर पर उसका वृत्त  १०० से १६० सेंटीमीटर तक रहता है। वृक्ष का फैलाव ऊपर की तरफ ही होता है यानि कि पेड़ की टहनियां तने के ऊपरी भाग में ही ज्यादा होती हैं और यह पेड़ एक बड़े से शामियाने की तरह लगता है। इसमें खिलने वाले फूल अत्यंत खुशबूदार और बिल्कुल लड्डू के जैसे  गोलाकार होते हैं। फूलों का रंग हल्का पीला, गहरा पीला, लाल अथवा नारंगी भी होता है। इसके पत्ते लम्बे और बड़े आकार के होते हैं। इसके फल छोटे और गुच्छेदार होते हैं। फलों में पीला गूदा होता है और वे सैकड़ो बीजों से भरे होते हैं। 


कदम के पेड़ का एक-एक हिस्सा उपयोगिताओं से परिपूर्ण है। वृक्ष की जड़ से लेकर फल तक, हर एक अंश का महत्व है। जैसे लकड़ी का प्रयोग कागज़, फर्नीचर, डब्बे, प्लाई बनाने में और इमारती लकड़ी के रूप में किया जाता है। फूलों का प्रयोग इत्र बनाने में, फल का प्रयोग खाने में, पत्तों का प्रयोग मवेशियों को खिलाने में और दवा बनाने में  और जड़ की छाल का प्रयोग रंग बनाने में किया जाता है। चूँकि इस पड़े का औसत घनत्व बहुत होता है इसलिए ये एक छायादार वृक्ष है। इसे इसकी सुंदरता एवं बदलते मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों को आसानी से झेल पाने की वजह से काफी पसंद किया जाता है। भारत के गावों और शहरों में इस वृक्ष को काफी मात्रा में उगाया जाता है। 

भारत में इस वृक्ष का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्व है। माना जाता है कि दक्षिण भारत विशेष तौर पर कर्णाटक राज्य पर शासन करने वाले पहले शासक कदम वंश का नाम इसी वृक्ष से पड़ा था। इस वृक्ष से जुड़ी कई कहानियां हमारे शास्त्रों और पुराणों में हैं। श्री कृष्ण और राधा जी के प्रेम प्रसंगों में कदम के वृक्ष का उल्लेख किया गया है। यह वृक्ष माँ पार्वती का निवास स्थान है। हमारे देश में पेड़ पौधों को पूजने की परंपरा में शामिल कई वृक्षों में से कदम का वृक्ष भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण वृक्ष है। करम कदम, भारत में मनाये जाने वाले एक उत्सव का नाम इस वृक्ष पर रखा गया है। यह पर्व भारत के दक्षिण प्रान्त में मनाया जाता है। कदम के पेड़ को हमारे देश में हरिप्रिया, सिंधुपुष्प, वृतपुष्प, जीर्णपर्ण, कदम्ब, कदम्बक आदि नामों से भी जाना जाता है। श्री कृष्ण का प्रिय वृक्ष होने के कारण इसे हरिप्रिया कहा जाता है। इसकी लोकप्रियता से जुड़ी एक और बात बताना चाहूंगी। श्री कृष्ण भक्त कवि रसखान की एक कविता में उन्होंने कहा है कि यदि उनका पुनर्जन्म हो तो वे पक्षी के रूप में जन्म लेकर उस कदम के वृक्ष पर निवास करना चाहेंगे जिसकी छाँव तले बैठकर श्री कृष्ण बांसुरी बजाते थे। उस कविता की पक्तियां कुछ इस प्रकार से हैं -

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

आशा है कि कवियों, लेखकों और देवी-देवताओं के प्रिय वृत्तपुष्प पर मेरा ये छोटा सा प्रयास आपका ज्ञानवर्धन करने में सार्थक साबित हो ! आज के लिए यहीं समाप्त करने की आज्ञा चाहूंगी ! धन्यवाद !!

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