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मोहम्मद अल इदरीसी

भूगोल शास्त्री    मोहम्मद अल इदरीसी   (सेउता  ११०० C.E.- ११६५/६६ C.E.)  आज हम चर्चा करेंगे एक अत्यंत प्रख्यात भूगोल शास्त्री की जो मूलतः अरब से थे। उनका भूगोल के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक युग में प्रयोग किये जाने वाले मानचित्रों को बनाने के लिए जिस नींव की आवश्यकता थी उसे उन्होंने स्थापित किया था। उनका जन्म अफ़्रीकी महाद्वीप में स्थित सेउता नामक जगह पर हुआ था। अल इदरीसी को उनके समय के विख्यात भूगोलविद्द, कार्टोग्राफर और मिश्रविज्ञान के ज्ञाता (इजिप्टोलॉजिस्ट) के रूप में माना जाता है।  चलिए उनके द्वारा किये कार्यों पर एक नज़र डालते हैं : १.अपने जीवन काल के शुरूआती दिनों में उन्होंने कई जगहों का स्वयं दौरा किया और उसका प्रारूप  तैयार किया। इसका अभिलिखित रूप दूसरे भूगोलशस्त्रियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज़ रहा है जिसे आज भी इस्तेमाल किया जाता है।  २. उनके टेबुला रोजेरिआना नाम के दस्तावेज़ में विश्व के कई देशों की व्याख्या उनके मानचित्रों के संग्रह के साथ प्रस्तुत किया गया है।  ३. उन्होंने अफ्रीका, हिन्द महासागर और सुदूर पूर्व में बसे देशों की जानकारी को संग्रहित

देश भक्ति समूह गान

आज का दिन   समूह गान को समर्पित  'हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग रूप वेश भाषा , चाहे  अनेक  हैं .............' आप में से कितने लोगों ने स्कूल में ये गीत गाया है ? ज़ाहिर सी बात है कि ७०-९० के दशक में केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने वाले सभी लोग इस गीत से भली भांति परिचित होंगे !  आज यूँ ही बैठे-बैठे अपने स्कूल के  दिनों में गाये इस गीत की याद आ गयी और लगा कि इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए क्यूंकि इसका हमारे यानि केंद्रीय विद्यालय के भूतपूर्व छात्रों के  जीवन और सोच पर अत्यंत गहरा प्रभाव रहा है। भले ही आपने इसे महसूस न किया हो परन्तु इस लेख के अंत तक आप मेरी बात से सौ फीसदी सहमत हो जायेंगे।  आज की इस  बातचीत से आप में से बहुत से लोग खुद को जोड़ पायेंगे बशर्ते कि आप मेरी तरह किसी केंद्रीय विद्यालय के छात्र रहे हों।  आज मुझे स्कूल में होने वाली सुबह की प्रार्थना सभा याद आ गयी। हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में शारीरिक व्यायाम पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। सर्दी हो या गर्मी, धूप या बरसात, प्रार्थना सभा होती  ही थी और व्यायाम उसका अभिन्न हिस्सा भी होता ही था। व्यायाम करने के पश्चात् हम

फ़िनलैंड - क्यों झीलों का देश ?

देश और दुनिया  फ़िनलैंड-  झीलों का देश  नॉर्वे के बाद एक और यूरोपीय देश की जानकारी आपके सामने प्रस्तुत करने जा रही हूँ। भरोसा रखिये कि 'देश और दुनिया' की इस श्रृंखला में विश्व के लगभग सभी देश जो किसी न किसी प्रकार से दूसरे देशों से भिन्न हैं अथवा अपनी किसी विशेषता की  वजह से अलग पहचान  रखते हैं  उनके बारे में पढ़ने को ज़रूर मिलेगा। परन्तु इसके लिए आपको भी मेरे साथ इस ब्लॉग से जुड़े रहने का वादा  करना होगा ! रहेंगे न? तो आज की चर्चा के लिए जो देश चुना गया है वो है फ़िनलैंड, जो नॉर्वे का पड़ोसी देश है। यहाँ की ख़ास बात है यहाँ पर पायी जाने वाली असंख्य झीलें जिसकी वजह से इसे हज़ार झीलों का देश कहा जाता है। तो आखिर ये झीलों का देश क्यों कहलाता हैं,  चलिए उसके बारे में जान लेते हैं।  हमारी पृथ्वी अपनी उत्पत्ति से लेकर अब तक कई भौगोलिक प्रक्रियाओं से गुज़र चुकी है जिनमें से एक प्रमुख घटना है हिमयुग। ये वह समय था जब पूरी पृथ्वी का तापमान शून्य से नीचे गिर गया था और सारी पृथ्वी को बर्फ के आवरण ने ढक लिया था।  वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर दो बार ऐसा हो चुका है। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से

पेड़-पौधों की दुनिया : हरसिंगार (शिउली)

 पेड़- पौधों की दुनिया   हरसिंगार (शिउली) ज़रा सोचकर बताईये तो चंपा, चमेली, जूही, रजनीगंधा और हरसिंगार के फूलों में क्या समानता है ? शायद आप ने कहा कि रंग ! जी हाँ, इन सभी फूलों का रंग सफ़ेद है।  निर्मल, शुद्ध और उजला श्वेत रंग जो हर तरह की मिलावट से दूर है। और कोई बात जो इनमें मिलती जुलती हो ? जी हाँ, इन फूलों की मंत्र मुग्ध कर देने वाली सुगंध। ऐसा शायद ही कभी किसी के साथ हुआ हो कि उन्होंने ये छोटे- छोटे मन मोह लेने वाले सफ़ेद फूलों से लदे  वृक्षों अथवा पौधों को  न देखा हो क्यूंकि उनकी सुंदरता को एकबार के लिए नज़रअंदाज़ कर भी दें परन्तु इन फूलों की बेहद आकर्षक खुशबू से  कोई नहीं बच सकता। इनकी सुगंध अनायास ही सबको अपनी तरफ आकर्षित करती  है। इनमें से ही जिसके बारे में आज मैंने लिखने का मन बनाया है वो है हरसिंगार।  शुरू करने से पहले एक बात पूछती चलूँ और अगर इसके बारे में आपकी राय भी पता चल जाये तो बहुत बढ़िया रहेगा ! दरअसल ये एक सवाल है, क्या ये कहना सही है कि किताबों, कहानियों, गानों और कविताओं का  हमारी सोच, जिज्ञासा और विचारधारा पर बहुत असर पड़ता है ?  मेरे हिसाब से तो इसका जवाब हाँ होना चाहि

ऑस्ट्रेलिया में नया साल

देश और दुनिया  ऑस्ट्रेलिया- नया साल ग्रीष्म ऋतु में पूरे विश्व में बहुत कम ही ऐसे देश हैं जो नए साल का स्वागत गर्मियों के मौसम में करते हैं। आगे बढ़ने से पहले आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि पृथ्वी के ७१ % भाग में जल है और सिर्फ २९ % भाग पर ही स्थल है। उसमें से भी सभी  बड़े महाद्वीप उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं जहाँ पर ४० % हिस्से में स्थल है और ६० % हिस्से में जल यानि कि महासागर हैं। दूसरी ओर दक्षिणी गोलार्ध के मात्र २० % हिस्से में स्थल है जिसमें दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्टिका केवल तीन महाद्वीप हैं और केवल  ३२ देश ही स्थित हैं। इन देशों की संख्या इस प्रकार से है - अफ्रीका के लगभग बीस, एशिया के दो, दक्षिणी अमेरिका के लगभग नौ और पूरा का पूरा ऑस्ट्रेलिया इसमे शामिल हैं। अब इनमें से आज हम बात करेंगे ऑस्ट्रेलिया की जो ग्रीष्म ऋतु में नया साल मनाता है। परन्तु कैसे ? ये जानने के लिए अंत तक ज़रूर पढ़ें।  ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है जो कि अपने आप में पूरा का पूरा महाद्वीप है। एकमात्र ऐसा देश जो कि पूरे महाद्वीप में फैला हुआ है। यहाँ एक और जानकारी दे दूँ, वो ये कि ऑस्ट्रेलिया भारत से दुगन

नॉर्वे का सूर्यास्त

देश और दुनिया  नॉर्वे, जहाँ सूर्यास्त नहीं होता ! कितनी अद्भुत बात है कि हमारी पृथ्वी पर जहाँ लगभग हर जगह दिन और रात का होना प्रतिदिन की प्रक्रिया है वहीं पृथ्वी के ही किसी एक भाग में कुछ ऐसे देशों का समूह है जहाँ साल के आधे समय में केवल दिन और आधे समय में केवल रात रहती है। ज़रा सोच कर देखिये कैसे वहां रहने वाले लोग दिन में ही रात की तरह सो जाते हैं और रात में काम के लिए निकलते हैं! कैसे उन्होंने अपनी दिनचर्या को प्रकृति के हिसाब से ढाला हुआ है जो इस बात का संकेत देती है कि मनुष्य किसी भी परिस्थिति के अनुसार ढल सकता है। इसे भूगोल की भाषा में मानव का प्रकृतिकरण कहते हैं। चलिए आज हम एक ऐसे देश के बारे में जानने का प्रयास करते हैं जहाँ हमारे देश की तरह हर रोज़ दिन-रात नहीं होते। जी हाँ, नॉर्वे एक ऐसा ही देश है! आज मैं नॉर्वे के बारे में चर्चा करूंगी जिसे हम अंग्रेज़ी में 'लैंड ऑफ़ द मिडनाइट सन' कहते हैं। आखिर उसे ऐसा क्यों कहते हैं ? चलिए जानते हैं ....  हम इसको भूगोल की दृष्टि से समझने का प्रयास करेंगे। यहाँ हमें दो बातें याद रखनी हैं - पहली बात है पृथ्वी का अक्षीय झुकाव और दूसरी बात

पेड़-पौधों की दुनिया: पलाश

पेड़-पौधों की दुनिया  पलाश  हिंदी भाषा में प्रयोग होने वाला एक बहुत ही प्रचलित मुहावरा है 'ढाक के तीन पात'। जब मैं एक विद्यार्थी थी मैंने कई बार अपने शिक्षकों को इस मुहावरे का प्रयोग करते हुए सुना था। परन्तु सच मानिये, भले ही मुझे मुहावरे का अर्थ याद हो गया था मगर यह जानने की उत्सुकता हमेशा से थी कि आखिर ये ढाक है क्या? तभी से मेरी खोज शुरू हुई। समझ लीजिये कि इस  लेख की प्रेरणा वहीं से मिली। ढाक की खोज करते हुए मैंने न केवल ये जाना कि  ढाक असल में एक पेड़ का नाम है बल्कि यह भी जाना कि यह वृक्ष कितनी खूबियों से भरा है। इस मुहावरे की उत्पत्ति इस पेड़ के पत्तों की इस विशेषता से हुई है कि वे तीन के समूह में उगते हैं और इसके इस गुण में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। तो जब किसी व्यक्ति या परिस्तिथि में हमें कोई बदलाव नहीं दिखता है तो हम कहते है ," फिर वही ढाक के तीन पात "। खैर में इस मुहावरे का विश्लेषण न करते हुए मुद्दे पर आती हूँ। तो आज का मेरा लेख  ढाक के वृक्ष पर केंद्रित है जहाँ मैं इस वृक्ष से जुड़ी कुछ भौगोलिक बातें बताउंगी। पहली बार मैंने इस वृक्ष को छात्रावस्था में ही देख