सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

इराटोस्थेनेस

भूगोल शास्त्री - इराटोस्थेनेस      (c. 276 BCE- c.194 BCE, Cyrene) इराटोस्थेनेस  एक वैज्ञानिक, गणितज्ञ, लेखक, कवि और एक खगोलशास्त्री थे। उन्होंने आधुनिक भौगोलिक अध्ययनों को एक ठोस आधार प्रदान करने के लिए विशिष्ट भूमिका निभाई है। उन्हें एक भूगोलवेत्ता के रूप में माना जाता है क्योंकि उन्होंने भूगोल के अध्ययन के क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान दिया है : उन्होंने 'भूगोल' शब्द गढ़ा है।  वे पृथ्वी की परिधि का माप देने वाले पहले व्यक्ति थे जो सटीक आकार के बहुत करीब है। उन्होंने पृथ्वी के अक्ष के झुकाव को मापा है। उन्होंने एक पुस्तक कैटस्टरिज़म लिखी थी जो नक्षत्रों की व्याख्या करती है। उन्होंने अक्षांश और देशांतर की अवधारणा को आगे बढ़ाया। उन्होंने दुनिया के प्रक्षेपण का विकास किया। गणित और भूगोल के क्षेत्रों में उनके अधिकांश काम संकलित किए गए हैं जिसे प्लिनी, पॉलीबियस, स्ट्रैबो और मार्सियानस जैसे कई ग्रीक लेखकों और इतिहासकारों ने सार्वजनिक पटल पर लाने का काम किया है। लेकिन दुखद बात यह है कि यह सब उनकी मृत्यु के बाद हुआ है। कोई भी भूगोलवेत्ता उनके द्वारा किये गए काम का सहारा लिए बिना भूगो

पेड़-पौधों की दुनिया : चक्र फूल

पेड़- पौधों की दुनिया   चक्र फूल  अमूमन भारत के उत्तरी हिस्से में रहने वाले लोग चावल से ज्यादा रोटी खाना पसंद करते हैं और ऐसा होना लाज़्मी है क्यूंकि उत्तर भारत में गेहूं की खेती चावल की खेती से कहीं ज़्यादा होती है। चावल खाने वाले लोग हमारे देश के पूर्वी, उत्तर पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र में ज्यादा हैं। इसी चावल से बनने वाली एक बहुत प्रचलित व्यंजन है  बिरयानी, जिसका नाम सुनते ही मुँह में पानी आ जाता है, भूख तेज़ हो जाती है और खाते खाते पेट भले ही भर जाए  पर मन नहीं भरता।   बिरयानी भारत के सभी क्षेत्रों में बड़े चाव से पकाई और खाई जाती है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता इस बात से आंकी जा सकती है कि अब इसका शाकाहारी रूप भी पकाया जाने लगा है। चलिए अब भूमिका बांधना बंद करते हुए मुद्दे की बात करती हूँ। आज मैं इसी लोकप्रिय व्यंजन में इस्तेमाल होने वाले एक बहुत ही असाधारण मसाले के बारे में बात करना चाहती हूँ। ये मसाला है, चक्र फूल या अनसफल । तो आज का दिन,   चक्र फूल अथवा अनसफल अथवा स्टार अनीस   से साक्षात्कार को समर्पित करते हैं।      सबसे पहले, आज चक्र फूल के बारे में बात करने की वजह बताती चलूँ। दरअसल मेरी

पेड़-पौधों की दुनिया : गुलमोहर

पेड़- पौधों की दुनिया  गुलमोहर Photo credit: Tejasdeep Mohanta इस साल, लॉक डाउन   की वजह से,अपने आस-पास के नैसर्गिक सौंदर्य को देखने का जो अवसर मिला है ये शायद उसी का परिणाम है कि बचपन की बहुत सारी यादें ताज़ा हो गई हैं। ऐसी ही यादों से जुड़ा एक गाना अनायास ही दिमाग में चलने लगता है जब भी मैं अपने घर की बालकनी से दिखने वाले बगीचे में लगे फूलों से भरे एक विशेष पेड़ को देखती हूँ। वो गाना है, ' गुलमोहार गर तुम्हारा नाम होता ,मौसम -ए -गुल को हँसाना भी हमारा काम होता.....'  हम सभी ने, जो उम्र के तीस-चालिस दशक पार कर चुके हैं, बचपन में ये गाना ज़रूर सुना या गुनगुनाया होगा। आज का ये लेख इसी गाने से प्रेरित है। इस गाने की वजह से ही मेरी पहचान इस वृक्ष से हुई थी।  आजकल के बच्चों के साथ, दो दशकों तक, बहुत करीब से समय बिताने के बाद मैंने पाया कि जिस तरह हमारे परिवार के सदस्यों ने और हमारे समाज ने हमें बचपन में हमारी प्रकृति से पहचान करवाई थी वैसा हम अपने बच्चों के साथ नहीं कर पाए हैं।आजकल के बच्चे तकनीक से जुड़ी हर चीज़ को हमसे बहुत बेहतर ढंग से समझते हैं। वे एक कृत्रिम दुनिया में ही जीना पसंद क

यादों के झरोखों से

आज का दिन यादों के झरोखों से  शायद इस लेख को पढ़ने वालों में से बहुत से लोगों के पिता जी भारतीय वायु सेना में कार्यरत रहे होंगे, तो उनके लिए खुद को इस लेख से जोड़ पाना आसान रहेगा। इस लेख के द्वारा मैं आप लोगों को अपनी कुछ ऐसी सुखद यादों के गलियारों में ले जाना चाहती हूँ जिन्हे मैंने जिया है। तो आज का दिन उन दिनों को याद करने का है और इस बात पर विचार करने का है कि हमारी पीढ़ी वैसे दिनों को क्यों सहेज कर नहीं रख पायी ?  भारतीय सेना की सबसे प्रमुख बात है कि उसमें सभी लोग धर्म, जाति, वर्ण, राज्य आदि की विभिन्नताओं से परे होते हैं। इस बात को मैंने बहुत करीब से देखा है। बात आज से लगभग २५ से ३० साल पहले की है जब मेरे पिताजी वायु सेना में काम करते थे और हम किसी वायु सेना के कैंप में रहा करते थे। उन जगहों पर साल के सभी पर्व बहुत ही मज़ेदार होते थे। यूँ समझ लीजिये कि त्यौहार भले ही किसी एक राज्य में मनाया जाने वाला हो पर वहां पर सभी लोग इन त्योहारों को मिलकर मानते थे। मार्च में जब होली मनाई जाती थी तो सभी धर्म के लोग एक निर्धारित जगह पर इकठ्ठा हो जाते और जम कर होली खेलते। ऐसे ही अप्रैल में बंगालियों